ह्रदय में प्रेम उमड़ा है तो घबराओ न, यह प्रेम का फूल बड़ा अनूठा है, यह ह्रदय में बड़ी कठिनाई से खिलता है, इसे सींचो, इसे सम्हालो यह मुरझाने न पाये।
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दुनियाँ में शायद ही कोई इंसान ऐसा होगा जिसे प्रेम ने न छूआ हो, प्रत्येक के जीवन में कभी न कभी प्रेम का आगमन होता ही है। कभी न कभी वह क्षण, वह दिन अवश्य ही आता है जब स्यमं को बिसार कर, मस्तिष्क के विचार दूसरे में समा जाते हैं, दूसरा इतना महत्वपूर्ण हो जाता है कि अपनी 'सुध, ही नहीं रहती, यह ख्याल ही नहीं रहता कि मैं भी हूँ, मैं तो जैसे कहीं खो ही जाता है, सिर्फ वही, वही रह जाता है। सिर्फ वही दिखाई पड़ता है, उसी के रात सपने आते हैं, उससे कभी मिलन की आस में यह ह्रदय नाचने भी लगता है, तो कभी बिछड़ जाने के डर से फूट-फूटकर रोता भी है।
लेकिन यह रोना उसे प्रीतकर लगता है, अगर कोई कहे कि जिसके लिए तुम रोते हो, उसे त्यागकर दुनियां के ऐश्वर्य और वैभव लेकर खुशी और आनंद से जियो, तो यह प्रेम करने वाला ह्रदय कभी भी नहीं स्वीकार कर पायेगा। यह वही स्वीकार कर पाएगा जो प्रेम का अभिनय कर रहा हो। यह रोना, यह पीड़ा उसके लिए सिर्फ दुख: नहीं है। यह रोना, यह पीड़ा उसके लिए वैसी ही है जैसी किसी प्रसूता स्त्री को होती है। जब बच्चे का जन्म होता है तब मां को बहुत पीड़ा होती है, वह असहनीय दर्द के कारण रोती भी है, लेकिन वह भीतर ही भीतर आनंदित भी होती है, क्योंकि वह जानती है कि जो आने वाला है, उसे बिना कष्ट के, बिना पीड़ा के नहीं उपलब्ध किया जा सकता, वह इस पीड़ा को स्यमं ही आमंत्रित करती है, स्यमं ही आयोजन करती है। इसलिए उसे दुखी देखकर यह समझना कि वह दुख में है, ठीक नहीं है। दुख में तो वे हैं जिन्हें यह पीड़ा, यह दर्द नहीं हो रहा है।
कुछ दुख ऐसे होते हैं, जो सिर्फ दुख ही होते हैं, उनके भीतर आनंद की कोई संभावना नहीं होती। प्रेम के दुख में, प्रेम की पीड़ा में, प्रेम के आंसुओं में उससे मिलन की आस है, उसके मिलन की उम्मीद है। उसकी याद में बहा आंसू का एक कतरा भी जाया नहीं जाता, उसकी याद में बिताया एक दिन भी व्यर्थ नहीं जाता। बल्कि वे दिन ही व्यर्थ मालुम पड़ते हैं जिन दिनों उसकी याद नहीं आती, वे आंसू भी जाया हो जाते हैं, जो उसकी याद के अभाव में बहते हैं। उसके मिलन का सुख, उससे एकात्म हो जाने का आनंद, इस दुख और पीड़ा को ऐसे दूर कर जाता है, जैसे प्रकाश के आने पर अंधेरा दूर हो जाता है।
अगर ह्रदय में प्रेम उमड़ा है तो घबराओ न, बल्कि आनंदित होओ, नाचो-झूमों और स्यमं को धन्यभागी जानो, यह प्रेम का फूल बड़ा अनूठा है, यह ह्रदय में बड़ी कठिनाई से खिलता है, इसे सींचो, इसे सम्हालो यह मुरझाने न पाये। डाक्टर कहते हैं कि दूध में सारे विटामिन्स एक साथ मौजूद रहते हैं, इसलिए मां का दूध नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। दूध मिल जाए तो फिर अन्य कोई पदार्थ आवश्यक नहीं है, पानी भी जरूरी नहीं है, किसी को भी स्वस्थ रखने के लिए अकेला दूध ही पर्याप्त है।
यदि जीवन में प्रेम मिल जाए तो फिर कुछ अन्य की जरूरत नहीं रहती। अकेला प्रेम ही जीवन की सारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने में समर्थ है। संसार का सारा वैभव भी प्रेम से मिलने वाले आनंद की तुलना में बौना है।
टिप्पड़ी:-
प्रेम पवित्र है, प्रेम निर्दोष है, प्रेम मासूम है! प्रेम को कभी भरोसा ही नहीं आता कि दुनियां में नफ़रत भी है, प्रेम आज तक यह निर्णय ही नहीं कर पाया कि क्यों उसे मारा जाता है, क्यों सताया जाता है, क्यों मिटाया है! शायद! इसलिए कि प्रेम आक्रमक नहीं है! आज दुनियां को प्रेम की नितांत आवश्यकता है, प्रेम का फूल खिले तभी ये नफ़रत के कांटे कुछ नरम पड़ेंगें क्योंकि वह प्रेम ही है जो सब जगह प्रविष्ट हो जाता है, सब जगह घुलिमल जाता है, वह प्रेम ही है जो उँच-नीच, जाति-पांत, समय स्थान, व काल से परे है।
यह जगत मूर्खों के हाथों की कठपुतली मालुम पड़ता है, मूर्ख दिलों से नफरत तो मिटाना चाहते हैं। लेकिन उन्हें मालुम नहीं है वे साथ ही प्रेम को भी मिटाने की साजिश रचते हुए चलते हैं। हृदय से प्रेम को मिटाया नहीं जा सकता और न ही नफ़रत को ही मिटाने की संभावना है। सिर्फ उन दोनों के अनुपात को ही घटाया व बढ़ाया जा सकता है। प्रेम का अनुपात बढ़े तो ही यह नफरत का "पारा" घटेगा। मित्रों! प्रेम को सींचों, नफ़रत स्वत: ही सूखने लगेगी यह प्राकृति का नियम है। हम प्रेम को सुखाते हैं, इसलिए तो नफ़रत खिलखिलाती है, मुस्कुराती है।
by: Arun Gautam
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